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________________ १०६ श्री वैराग्य शतक विषयवृत्तिरूपी वायु वा'यो नथी, जो ए वायु जाग्यो तो बधी बाजी ऊंघी वळी जशे. ए चित्तसागर जछळवा मांडशे, सद्बुद्धि नौकाने ऊलटावी नाखशे, कप्तानने पण बेकाबु बनावी देशे. ने बधां नीचे तळीए जईने बेसशे. माटे ए वायु न वा'य एनी हे चेतन ! सावचेती राखजे ए तारे आधीन छे, विषयवासनाने नाबुद करो ने सद्बुद्धि नावमां बेसी पार पडो, गुणरत्नने साचव ने वधारो-सुखी थाव. (८०) (८१-८२) मळेल सामग्री सर्व अल्पकाळ माटे छे, माटे श्रेयः करो, श्रेयः करो. संध्या समयनां वादळा सरखी समृद्धि जाणवी, जीवन दशा पण पाणीना बुद्बुद समी निर्धारवी, नदी वेगनी जेवी जुवानी केटला वरसो रहे, विचारीने हे जीव ! तारू श्रेय शेमां ते कहे. गुलाबकेरूं पुष्प आ शुभगन्धथी बहेकी रह्यं. जनचित्तने खेंची रह्यं रूप रंगने रसथी भर्यु, स्पर्शे सुंवाळू पण अरे क्षणवारमा पलटाय छे, जो जीव ? नेत्रो खोलीने जे पगतळे चगदाय छे. विवेचन :- संसारमां कई चीज शाश्वत छ ! कई चीज एक सरखी रहे छे ! कई चीज बदलाती नथी ! क्षणवारमा बधुं फरी जाय छे. एकज दृष्टांत ल्यो. खीलेलं गुलाब- फुल केवी सुगंध फेलावे छे, तेमांथी केवी मीठी
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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