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________________ श्री वैराग्य शतक १०५ छे, तेनी वातो साची माने छे. धर्मगुरुने माटे उपजावी काढेली साची जूठी, न करवानी वातो करे छे. जनतामाथी तेमना प्रत्येनी पूज्य - बुद्धि ओछी करवा प्रयत्न करे छे, अने एकान्त पाप प्रवृत्तिमां राच्यो माच्यो रहे छे. अंते घोरपाप बांधी दुःखी थाय छे. माटे हे चेतन ! ए मिथ्यात्व तारी पासे न आवे, तने तेनो वळगाड न लागे ए माटे सचेत रहेजे. सम्यक्त्वने दृढ करजे ने सुखी थजे. (७९) (८०) शान्तचित्तरूपी समुद्र पण विषयवासना रूपी वायुथी खळभळी उठे छे. - जेम प्रबलपवने शान्तजलधि पण अतिशय खळभळे, तोफानमां आवी तरंगी प्राण ने धन संहरे तेम चित्त - जलधि विषय वृत्ति वायुथी डोळाय छे. सद्बुद्धि नौका बहु गुणोनी साथ तळीये जाय छे. - विवेचन-प्रशान्त महासागर पण प्रबळ पवननुं जोर होय तो काबुमां नथी रहेतो, खळभळी उठे छे. तोफानमां आवी जाय छे मोटा मोटा मोजाओ उछाळी वहाणोने आगबोटोने - नौकाओने डुबाडी दे छे. माल-मिल्कत ने मुसाफरोनो नाश करे छे. एज प्रमाणे मन ए एक महासागर छे. चित्त ए स्थिर समुद्र छे. सद्बुद्धिरूपी नाव अनेक गुण रत्न भरेलुं तेमां तरे छे. बुद्धिमान आत्मा ए कप्तान छे. तेनी एक सरखी गति त्यां सुधी रहे छे. के : ज्यां सुधी
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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