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श्री वैराग्य शतक ए तारो मिथ्या मोह छे. भ्रम छे, तारो कोई मित्र नथी ने शत्रुओ नथी, तारूं भलु के बुरू करवानी कोईमां शक्ति नथी, तारू सारूं के नरसु करवा तुं ज समर्थ छो सुखी थर्बु के दुःखी थर्बु तारे आधीन छे. संसारमां-परभावमां आसक्ति धरीश तो दुःखी थईश, तुं ज तारूं बगाडीश. स्वभावमां रमीश-आत्मा रमणता केळवीश तो सुखी थईश, ने तारा आत्मानो उद्धार करीश. माटे पुद्गल रमणताने छोडी दईने आत्म रमणताने केळव. (७८) (७९) धर्म अने धर्मिजनो सामेनो बकवाट ए
___ महामिथ्यात्व- तांडव छे. मिथ्यात्वविषधर विष चडे छे जे समे आ आत्म ने, श्रद्धांग थाय शिथिल ने थाये प्रमादी ते समे, निन्दे विशेषे धर्मीजनने नास्तिकोने संग्रहे, खुल्ला करे मर्मो गुरू नां पापवृत्ति ने वहे.
विवेचन-ज्यारे आ आत्माने मिथ्यात्वरूपी नाग डसे छे ने तेनुं झेर चडे छे, मिथ्यात्व पिशाच वळगे छे, मिथ्यात्व भूत भराय छे. त्यारे तेनुं श्रद्धाशरीर शिथिल थई जाय छे, ए खवाई जाय छे, नाश पामे छे, तेने प्रमादनो आवेश आवे छे. ए नाचे छे, कुदे छे, नहिं बोलवानुं बोले छे, ने नहिं करवानुं करे छे. धर्मात्माओने निंदे छे भांडे छे, अछतां दूषणो मूके छे. पापात्माओनो नास्तिकोनो परिचय करे छे तेने पोषे