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________________ श्री वैराग्य शतक . आ काळरूप पिशाच पापी छळ करीने संहरे, एना झपाटामां पडेलो झरी झरीने मरे हा हा ? करी नहीं धर्म सिद्धि एम पस्तावो करे ॥ विवेचन - काळ ए काळो नाग छे, ए भयंकर झेरी छे, एनुं झेर-विष कोई रीते उतरे एवं नथी. एवी कोई कळा नथी. एवं कोई ओसड नथी. मंत्र-तंत्र के विज्ञान एवं कोई नथी के जे आ नागना झेरथी बचावे. ए नाग कोईने छोडतो नथी. एक सरखो सर्वेने डसे छे, तुं तारा रूपथी मलकातो होइश. तारा सौन्दर्य- तने अभिमान हशे. तारा शरीर माटे तने गौरव हशे, पण ते कयां सुधी? काळ फणीधरना एक झपाटा साथे बधुं खलास. त्यां तारूं कांई नहि चाले, माटे धर्म कर. काळ ए काळो भमरो छे. ए अनादि काळथी माणस-प्राणी-रूपी मकरन्दने-पुष्परसने चूस्या करे छे पण धरातो नथी, पृथ्वी ए पुष्प-फुल छे. तेनी-नाळ-दांडी छे. शेषनाग, पर्वतो ए केसरा-कळीओ छे ने दिशाओ ए पांदडां छे. ए पुष्पमां पराग-रस कोई होय तो ते प्राणी छे ने चूसनार भ्रमर ए काळ छे, माटे काळथी चूसावा करतां हित साधवामां तत्पर बन. काळ ए पापी पिशाच छे, ए अत्यन्त बिहामणो छे. एने कोईनी पण-जरी पण दया नथी. छायाना छलथी - पडछायाने बहाने ए हमेशा बधानी साथेने साथे ज रहे छे, जराक नबळी पडयो के उपाडी ले छे. ए लाग शोधतोज
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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