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श्री वैराग्य शतक फरे छे, वखत आवे के तरत ते प्राणीने पोताना झपाटामां लई ले छे, एना झपाटामा फसायेलानो केमे करी छुटकारो थतो नथी-झुरी झुरीने मरे छे. त्यारे एने थाय छे के पहेलां ए चेत्यो नहि. पहेलां चेत्यो होत तो आ वखत न आवत. पण पाछळथी शुं वळे, माटे हे चेतन ! हजु काळनो सपाटो नथी लाग्यो त्यां सुधीमां चेती जा ! ने धर्माराधन करी ले. काळ पण धर्मथी डरे छे. धर्मनी जेने सहाय छे तेने ते पण विशेष पीडा आपतो नथी. माटे धर्मने साध ने धर्मनी मददथी काळथी बची सुखी था. (५९-६१) (६२) कर्मनी परतन्त्रता एज खरी परतन्त्रता छे, ए महादुःखदायिनी छे, एथी मुक्त थवा प्रयत्न करो. चणी बोर मूळा मोघरीनी जातिमां पण तुं गयो, विष्टातणो कीडो थयो थई शेठ नोकर पण थयो, एम विविध कर्मवशे करी संसार नाटक संचर्यो. हा ! मित्र ! तुं परवशथकी दुःखी थयो दुःखी थयो.
विवेचन - हे मित्र ! तुं कर्मने वश छो. कर्मराजा तने जेम नचावे छे तेम तुं नाचे छे. नटनी जेम भवनाटकमां जुदा जुदा वेष भजवे छे. तुं चेतन अने कर्मजडं, तारा उपर ए जडनी सत्ता, ए तने चणीबोर तुच्छफळ, मूळाना कांदा, मोघरी, सुघरी, वाघरी वगेरेमां जईने रहेवार्नु कहे तो तारे रहेQ पडे. अरे ! कीडो बनावी विष्टामा राखे तोय तारे मुंगे