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श्री वैराग्य शतक परिमित जीवन पूरू थशे, ए जीवन एज तारो आधार छे. ए खाली थशे एटले तारे पण बीजे जवू पडशे. त्यां रस्तामां तने कोई सहाय नहिं करे तुं क्यांय नरक तिर्यंच आदि खाडामां गबडी पडीश माटे धर्मने कर, सुकृतने साथे लेतो जा, ए सुखडी छे, ए सहायक छे, ए तने पडतो बचावशे, ए तने आगळ जवामां मदद करशे. नहि तो मधमाखीनी माफक हाथ घसवा पडशे, पीधुंये नहि ने दीधुंये नहि, खाधंय नहिं ने खवराव्यु नहिं, एमने एम बधुं वेडफाइ जशे माटे जेटलुं सधाय एटलुं साधी ले. पहेलेथी चेत जेथी पाछळथी पस्तावू न पडे. (५८)
(५९ थी ६१) कराल काळना झपाटामांथी कोई छूटतुं नथी धर्मने आराधो ने सुखी बनो. जे शरीरनुं सौन्दर्य नीरखी चित्तमांहे तुं हसे हेनेज ज्यारे काळ रूपी नाग झेरीलो डसे ते समे कोई कळा नथी के कोई पण औषध नथी नथी मन्त्र तंत्र विज्ञान एवं थाय रक्षण जेहथी शेषनाग ए छे नाळq ने पृथ्वी ए तो पुष्प छे, छे पर्वतो ते केसरा सर्वे दिशाओ पत्र छे. माणसरूपी मकरन्द छे एने अनादि काळथी, आ काळ-भमरो चूसतो संतोषने धरतो नथी. दिन-रात छिद्र गवेषतो छाया तणे ब्हाने फरे,