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________________ ८२ श्री वैराग्य शतक मळशे. तेमां बेसी जजे. बरोबर साचवीने बेसजे जेथी पडी न जवाय. ए वाहनो तने एकदम - एक क्षणमां आ त्रणे चोरो ज्यां न पेसी शके एवा स्थाने पहोंचाडी देशे, माटे ऊंघ त्यजी आळस छोडी. ऊभो थई मार्गे चडी जा ने चालवा मांड, कल्याण कर. (५७) (५८) परभवे जतां पहेलां धर्मनुं भातुं बांधी ल्यो, जेथी आगळ उपर हाथ घसवानो वखत न आवे. आ काळरूपी रेंटने शशी सूर्य वृषभो फेरवे, दिनरात रूप घटमाळथी तुज जीवन धनने संहरे पण परभवे पाथेय सरखां धर्मने नव आदरे हा हाथ घसतो जइश चेतन मधतणी माखी परे विवेचन - हे चेतन ! जो, आ अहिं जो शुं थइ रह्युं छे, ते तपास ! तारो जीवनरूप जळथी भरेलो कूवो उलेचाय छे-ते खाली कराय छे तेने कांठे काळरूप अघट्ट (रेंट) चाले छे चोवीश कलाक चाले छे. साठे घडी चाले छे. सेकन्ड पण-समय पण पोरो खातो नथी. तेने फेरवनारा बे महान वृषभ - बळद छे. वाराफरती ए जोडायाज करे छे, ए थाके एवा नथी एनां नाम छे, सूर्यने चंद्र. ए चाले छे ने दिवस ने रातरूपी घटमाळ फरे छे. ने तेमां भराई भराई तारूं जीवन धन घटतुं जाय छे. जोत जोतामां ए घटी जशे ने
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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