SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शिवभद्र की कथा लंक धर्म की अभिलाषा वाले यसि शुद्ध कर लेते हैं। शिवभद्र मुनि के समान । ___ शिवभद्र मुनि की कथा इस प्रकार है। यहां कौशाम्बी नगरी में पूर्व दिशा के उद्यान में स्थित भवन में वास करने वाला परशुपाणी नामक यक्ष रहता था। उसके प्रतिहार (सेवक देव) भी उसके पड़ोस में रहते थे। एक समय उक्त भवन में सूत्रार्थ का ज्ञाता सुदर्शन नामक साधु विशेष तप कर्म करने की प्रतीज्ञा लेकर कायोत्सर्ग से खड़ा रहा । उप्तका मन डिगाने के हेतु वह यक्ष उसे सर्प का रूप करके डसने लगा। हाथी का रूप करके पीड़ित करने लगा तथा अट्टहास्य करके डराने लगा । तथापि मुनि.के मन को क्षोभ न हुआ। तब वह हर्षित हो मुनि को नमन करके विनन्ती करने लगा कि हे मुनिवर ! आपके समान सद्योगशाली को भी पाप करने को उद्यत मैंने जो उग्र उपसर्ग किया है, सो हे पूज्य ! क्षमा करिये, यह कहकर वह यक्ष उक्त साधु के चरण कमल में अपना मस्तक नमा कर उससे क्षमा मांग कर शिष्य के समान समीप रह कर उनकी सेवा करने लगा। ___ अब वहां शिवभद्र और श्रीयक नामक दो पुरोहित के पुत्र आ पहुँचे। उन्होंने उक्त अति दुष्कर तप से कृश अंगवाले मुनि को देखा। तब वे हंसते हुए बोले कि-हे मुनीन्द्र ! धर्म के हेतु अपनी आत्मा को पीड़ित करना यह तो अत्यन्त अयुक्त है। क्योंकिधर्म से धन मिलता है, धन से काम मिलता है और काम से संसार होता है तब मूल धर्म करना, यही भारी अयोग्य है। इस प्रकार उनको उपहास करते देखकर यक्ष को बहुत क्रोध आया। जिससे वह तीक्ष्ण कुल्हाड़ा लेकर उनको मारने के लिये
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy