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आगमोद्धारक - प्रन्थमालायाः चतुस्त्रिंशं रत्नम्
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मोत्यु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स ॥
पू० आगमोद्धारक - आचार्य प्रकार आनन्दसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः
श्री शान्तिमूरि-पुङ्गव विरचित धर्मरत्न प्रकरण ।
पू० आचार्य श्री देवेन्द्रसूरि पुङ्गव विरचित टीका का हिन्दी अनुवाद सहित तीसरा भाग
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संशोधक
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प० पू० गच्छाधिपति आचार्य श्रीमन्माणिक्यसागरसूरीश्वरशिष्य शतावधानी - मुनि लाभसागर गणि
वीर सं. २४९३ क्रिस अगर सं. १७ प्रतयः ५००/
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