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________________ म्लेच्छ का दृष्टांत १७५ % अवगाहना सो सिद्धों का शरीर नहीं होने से सिद्ध जीवों के जीव-प्रदेश अवगाढ़ हुए (व्याप्त हुए) आकाश प्रदेश रूप से यहां लेनी चाहिये । वहाँ इषत् प्राग्भार के ऊपर के योजन का जो अन्तिम कोस है, उसके छठे भाग में सिद्धों की अवगाहना है। तीन सौ तैतीस धनुष और एक तृतीयांश धनुष यह उत्कृष्ट अवगाहना और चार हाथ में एक तृतीयांश कम, यह मध्यम अवगाहना है । जघन्य अवगाहना एक हाथ और आठ अंगुल है। यह सर्व अवगाहना शैलेशीकरण के समय रहे हुए शरीर से उसकी एक तृतीयांश कम और उसी के समान आकारवाली होती है । इसीलिए निर्वाणगत सुखों को अर्थात् सिद्धजीवों के सुखों को पाते हैं, ऐसा समझना चाहिये। सिद्ध के सुख आगम में इस प्रकार कहे हैं- मनुष्यों को वह सुख नहीं, वैसे ही सर्व देवों को भी वह सुख नहीं, कि-जो सुख अव्याबाध पद पाये हुए सिद्धों को है । जैसे कोई म्लेच्छ नगर के अनेक प्रकार के गुण जानता हुआ भी कहने को समर्थ नहीं होता, क्योंकि-उसे वहां कोई वैसी उपमा मिल नहीं सकती (वैसा ही सिद्ध के सुखों के लिये भी जानो।) _ म्लेच्छ का उदाहरण इस प्रकार है कोई राजा अपने नगर से उलटा सिखाये हुए घोड़े द्वारा वन में आ पड़ा, वहां वह भूख-प्यास से पीड़ित हुआ । जिससे वह झाड़ के नीचे जा पड़ा इतने में किसी पुलिंद ने (म्लेच्छ ने) करुणा लाकर उसे निर्मल जल तथा फल देकर चैतन्य किया । अब उसकी सेना के आ पहुँचने पर वह कृतज्ञ राजा उक्त पुलिंद को अपने नगर में ले आया और वहां उसे उत्तम महल में रखा तथा उसे सुदर वस्त्र पहिराये । तथा स्वादिष्ट मोदक आदि दिव्य
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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