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________________ शैलक-पंथक का दृष्टांत 1P पत्तो सुसीससह एवं कुरणंतेण पंथगेणावि । गाढप्पमाइणोवि हु सेलगमूरिस्स सीसे ।। १३२ ॥ मूल का अर्थ - गाढ प्रमादी शेलकसूरि के शिष्य पंथक ने भी ऐसा करते हुए सुशिष्य शब्द का विशेषण प्राप्त किया । १३३ टीका का अर्थ - प्राप्त किया अर्थात् उपलब्ध किया, सुशिष्य ऐसा शब्द अर्थात् विशेषण - वह इस प्रकार अर्थात् पुनः भी चारित्र में प्रवृत्ति कराते हुए पंथक ने अर्थात् पंथक नामक मंत्रीपुङ्गव साधु ने भी अपिशब्द से उसके समान दूसरों ने भी उक्त विशेषण प्राप्त किया । क्योंकि कहा है किः - -- 'जो कदापि गुरु शिथिल हो जावें तो सुशिष्य उसको भी युक्तियुक्त मधुर वचनों से पुनः मार्ग में लाता है । यहां शैलक और पंथक का उदाहरण है" । उसीका विशेषण देते हैं- गाढ प्रमादी अर्थात् अतिशय शिथिल शैलकसूरि का वह शिष्य था इस प्रकार गाथा का अक्षरार्थ है । भावार्थ कथानक पर से जानना चाहिये । शैलक-पंथक की कथानक इस प्रकार है: पर्वत के शिखर समान कविकुल रूप कलापि ( मौरों ) से कलित शैलकपुर नामक नगर था। वहां प्रताप और स्वच्छ कीर्ति के शैल (पर्वत) समान शैलक नामक राजा था । उसकी सद्धर्म के कार्य में निष्कपट पद्मावती नामक रानी थी और सन्नीति रूप नागरवेल के मंडप समान मंडक नामक पुत्र था। उसके पंथकादि पांच सौ मंत्री थे । वे चारों शुद्धबुद्धि की संसिद्धि के पंथ समान थे और उसीसे राज्य भार उठाने में तत्पर थे । शैलक राजा थावच्चाकुमार आचार्य से गृहि-धर्म अंगीकृत करके चिरकाल 1
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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