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________________ १३२ गुरु को नहीं छोड़ने पर मंदता, मनाप्रमादिता-कुछ प्रमादपन आदि दोषों के लवों के योग से हेय अर्थात् छोड़ने योग्य नहीं है । ___ आगम में भी इस प्रकार कहा है कि - "जो गुरु को मंद, वृद्ध वा कम पढ़ा हुआ जानकर हीलते हैं, वे मिथ्यात्व में पड़ कर गुरुओं की आशातना करते हैं । क्योंकि- कोई कोई स्वभाव ही से मंद प्रकृति होते हैं तथा वृद्ध हो जाने पर भी वे श्रुत बुद्धि से. युक्त हैं तथा ( कम पढ़े हुए होने पर भी ) आचारवान् और गुण में सुस्थित रहते हैं । अतः उनकी हीलना करने पर वे अग्नि के समान भरमसात् करते हैं"। जो नाग को बुड्ढा हुआ जानकर छेड़े तो उनको अहितकारी हो जाता है । वैसे ही आचार्य की हीलना करने से भी मंद-जन जन्म मार्ग में पड़ते हैं । यहां जो मूलगुणों से रहित हो सो गुरु गुणरहित जानो । कोईक गुण से हीन हो सो नहीं माना जाता। यहां चंडरुद्राचार्य राजा का उदाहरण है। इस प्रकार के आगम के वचनों का अनुसरण करके मूलगुण शुद्ध गुरु हो उसे नहीं छोड़ना चाहिये। ___किसी समय गुरु कुछ प्रमादी जान पड़े, तो मधुर उपक्रम से अर्थात् सुखकर उपाय से अर्थात् अंजली जोड़, प्रणाम करके प्रिय वचन बोलना कि- “ बिना उपकार के परहित करने वाले आपने हमको गृहवास की पाश में से मुक्त किया, यह बहुत उत्तम किया, अतः अब उत्तरोत्तर मार्ग में प्रवृत्त करके, इस भयंकर भवकांतार से हमको पार कीजिये।" इस भांति उत्तेजित करके उन्हें पुनः यथोक्त मार्गानुसारी अनुष्ठान में प्रवृत्त करना चाहिये। ऐसा क्यों कहते हो, उसका कारण कहते हैं
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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