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________________ ९. असग्रह का त्याग पर भी जानो । उसमें अट्ठम-भक्त-तप होता है, और बाहिर ईषत्प्राग्भारपृथ्वी में आँख की पलक मारे बिना एक दृष्टि से देखता हुआ खड़ा रहे। . लंद याने काल, वह उत्कृष्ट मध्यम और जघन्य इस प्रकार तीन भेद हैं । जघन्य काल याने भींगा हुआ हाथ सूखे उतना समय जानो। उत्कृष्ट काल अर्थात करोड़ पूर्व जानो। मध्यम के अनेक स्थान होते हैं। अब यहां उत्कृष्ट यथालंदत्व पांच अहो रात्रि का कहा है। क्योंकि-पांच रात दिवस तक एक वीधी में भिक्षा के लिए फिरते हैं, उससे वह यथालंद कहलाता है। वे गच्छ में उत्कृष्ट से पांच ही होते हैं । जो मर्यादा जिनकल्प में है वही मर्यादा यथालंदकल्प वाले की जानो। केवल सूत्र में भिक्षा में और मासकल्प में अन्तर होता है। गच्छ में अप्रतिबद्ध यथालंदों की मर्यादा भी जिनकल्पि के समान ही है । केवल काल में विशेषता है वह यह किऋतुवास पाँच होते हैं और चातुर्मास होता है । गच्छप्रतिबद्ध यथालंदिओं में यह विशेषता है कि-जो उनका अवग्रह होता है वह आचार्यों का भी गिना जाता है। वे एक उपाश्रय में पांच रहे हों तो गांव के छः भाग करें और नियम से प्रतिदिन भिन्न भिन्न भाग में भिक्षा को जावे। प्रतिबद्ध और अप्रतिबद्ध के इन प्रत्येक के पुनः दो भेद हैंजिनकल्पि और स्थविरकल्पि । अर्धश्र त देश से असमाप्त हो वहां तक गच्छ का प्रतिबंध जानो। वहां लग्न आदि पुनः लम्बे आते हों तो वे यथालंदकल्प को तुरत ही ग्रहण करके क्षेत्र के बाहिर रहें । नहीं लिया हुआ श्रुत हो उसे ग्रहण करें । वह इस प्रकार कि-वहां आचार्य जाकर उसे पद दे आत्रे, तथा वे क्षेत्र में आवे
SR No.022139
Book TitleDharmratna Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages188
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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