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________________ परगृह गमन वर्जन म मित्र को पूछा कि- जिस रत्नावली के लिये तुम्हारी लड़ाई है वह यही है कि नहीं ? तब धनमित्र बोला कि- हे देव ! वह यही है। किन्तु यहाँ क्या परमार्थ हैं सो तो सर्वज्ञ मुनि जाने तब राजाने विस्मय पाकर, वह रत्नावली अपने भंडारी ( कोषाध्यक्ष) को सौंपी। धनमित्र के इस भांति शुद्ध होने से उसे भली भांति सन्मान देकर तथा इभ्य को अपने मनुष्यों के सुपुर्द करके राजा अपने स्थान को गया। अब धनमित्र अपने भित्राककों से परिवारित हो, तोथे को उन्नति करता हुआ अपने घर आया। इतने में वहां गुणसागर केवलो का आगमन हुआ, उनको नमन करने के लिये धनमित्र, नागरिक जन तथा परिजन सहित राजा आदि भी वहां गये। राजा ने इभ्य को भी वहां बुला लिया. बाद धर्मकया सुन समय पाकर राजा के उक्त वृत्तान्त पूछने पर ज्ञानी इस भांति कहने लगे। ___ यहां विजयपुर नगर में गंगदत्त नामक गृहपति था, उसकी मिष्टभाषिणी किन्तु मायापूर्ण मगधा नामक स्त्री थी । उसने ईश्वर नामक वणिक को संतोषिका नामक स्त्री का एक लाख मूल्य का उत्तम रत्न किसी प्रकार उसके घर में घुसकर चुरा लिया । उसको इसकी खबर पड़ने पर वह मगधा से मांगने लगी, किन्तु मगधा हार न देकर उल्टी गालियां देने लगी. तब संतोषिका ने इस विषय में गंगदत्त को उपालंभ दिया । ___ गंगदत्त स्त्री के स्नेह से मुग्धचित्त होकर बोला कि तुम्हारे घर ही के किसी मनुष्य ने चुरा लिया होगा अतः हमको व्यर्थ दोष मत दे। यह सुन वह वणिक स्त्री अपने रत्न के मिलने की आशा टूट जाने से तापस की दीक्षा ले व्यंतर रूप में उत्पन्न हुई। मगधा भी तथा विध कर्म करके मृत्यु को प्राप्त हुई, वह यह
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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