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आनन्द श्रावक का दृष्टांत
में अभ्यंग के लिये शतपाक और सहस्र पाक तैल छुटे रक्खे । उद्वर्तन के लिये गंधान्य छुट्टा रखा और नहाने के लिये पानी के आठ घड़े रखे। ___ अंगलूहण के लिये गंधकषाय, दातौन के लिये मधु यिष्टी, वस्त्र के लिये क्षौम युगल तथा विलेपन के लिये चन्दन, श्रीखण्ड रखा । अलंकार में कर्णाभरण व नाम मुद्रा तथा फूलों में पुडरीक व मालती के पुष्पों की माला की छुटी रखी। धूप में अगर और तुरुष्क, दाल में कुलथी, मूग और उड़द की दाल, कूर में कलमशाली और घृत में शरद ऋतु का गाय का घी रखा।
भक्ष्य में घृत पूर्ण खंडखाद्य, शाक में सौवस्तिक का शाक, सालण ( अथाणा ) में पल्लंक और आहुरक में वटक आदि दानों को छूट रखी । तंबोल में कर्पूर, लौंग, ककोल, इलायची और जायफल, फल में श्रीरामल और पानी में आकाश के जल की छूट रखी। ___ इतनी वस्तुओं के सिवाय शेष वस्तुओं का भोजन से भोगोपभोग में त्याग किया और कर्म से पन्द्रह कर्मादान तथा खरकर्म का त्याग किया तथा उस अवद्य-भीरु ने अपध्यान, प्रमादाचरित, हिंस्रप्रदान और पापोपदेश. इस प्रकार चारों प्रकार के अनर्थदंड का त्याग किया व उसने सामायिक, देशावकाशिक, पौषधोपवास और अतिथि संविभाग व्रत यथोचित विधी के साथ अंगीकार किये। ____ अब प्रभु बोले कि- हे आनन्द ! सम्यक्त्व मूल बारह व्रतों के पांच २ अतिचार तूने वर्जन करना चाहिये। __आपकी शिक्षा चाहूँ, यह कह आनन्द श्रावक वीर-प्रभु को वन्दना करके अपने घर को आया और उसने अपनी स्त्री को प्रभु के पास (धर्म सुनने के लिए) भेजा।