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________________ ५० आनन्द श्रावक का दृष्टांत उसके यहां चार करोड़ धन निधान में रहता और चार करोड़ वृद्धि के उपयोग में आता था, चतुष्पद के विस्तार में उसके यहाँ दश दश हजार गायों के चार गोकुल थे और पांच सौ हल थे तथा चारों दिशाओं से घांस आदि लाने के लिए पांच सौ गाड़े थे और चार विशाल जहाज थे । अब एक समय वहां दूतिपलाश नामक उद्यान में महान् अर्थ वाले, पदार्थ समूह को विस्तार से प्रकट करने वाले वीरस्वामी पधारे । प्रभु को नमन करने को जाते हुए राजा आदि लोगों को देखकर आनन्द गृहपति भी आनन्द से वहां गया । तब भगवान उसको इस प्रकार धर्म कहने लगे कष, छेद, ताप और ताडन से शुद्ध किये हुए सोने के समान श्रुत, शील, तप और करुणा से जो रम्य धर्म हो उसे ग्रहण करना वह तीन प्रकार के उपद्रव दूर करने में समर्थ और विमल धर्म दो प्रकार का है :- सुसाधु का धर्म और सुश्रावक का धर्म । सुसाधु धर्म दश प्रकार का है और श्रावक का धर्म बारह प्रकार का है ऐसा सुनकर साधु धर्म को लेने में असमर्थ आनन्द ने प्रमोद से सम्यक्त्व मूल श्रावक का धर्म ग्रहण किया । का यथाः- निरपराधी त्रस जीवों की संकल्प पूर्वक हिंसा का दो करण और तीन योग से त्याग किया तथा स्थावर जीवों की निरर्थक हिंसा करने का भी त्याग किया । कन्यालीक आदि पांच प्रकार के अलीक वचनों का द्विविध त्रिविध त्याग किया तथा स्थूल अदत्तादान का त्याग किया वैसे ही शिवानन्दा को छोड़कर मैथुन का त्याग किया | पूर्व परिग्रहों से अधिक परिग्रहों का त्याग किया साथ ही शक्त्यनुसार दशों दिशाओं का परिमाण नियत किया. भोगोपभोग
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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