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________________ चंद्रोदर नूप चरित्र २९१ पूर्व में कुछ भी सुकृत न करने पर भी मरुदेवी माता के समान शुभ भावना के वश जीव तत्काल निर्वाण पाते हैं। इस प्रकार धर्म सुनकर चन्द्रोदर राजा ने हर्षित मन से सम्बक्त्व सहित निर्मल गृहीधर्म स्वीकृत किया। पश्चात् गुरु को प्रणाम करके राजा अपने स्थान को गया, और भव्यों को प्रतिबोधित करने के हेतु गुरु भी अन्य स्थल में विचरने लगे। राजा ज्ञान पढ़ने लगा, ज्ञानियों को सदैव सहायता करने लगा, सात क्षेत्रों में धनव्यय करने लगा, दीन जनों का उद्धार करने लगा। अपने देश में अमारी पड़ह की घोषणा कराने लगा, उचित शील धारण करने लगा, शक्ति अनुसार तप करने लगा और हृदय में शुभ भावनाए करने लगा। ___ अब एक दिन वह राजा माता पिता से मिलने को अत्यन्त उत्कठित होकर अपना राज्य सम्हला कर चक्रपुर की ओर चला। अब एक विद्याधर आगे जाकर सहसा राजा को चन्द्रोदर कुमार का आगमन कह कह कर बधाई देने लगा। तब पुत्र का आगमन होता जान कर राजा बड़े-बड़े सामन्त, मंत्री और सैन्य के साथ हर्ष से कुमार के सामने आया। वह पुत्र की महान् ऋद्धि देखकर विस्मित हो कहने लगा कि-अहो ! इस महा पुण्यशाली पुत्र को धन्य है । अब चन्द्रोदर कुमार ने विमान से उतर कर पिता को प्रणाम किया तब उसने भी स्नेह पूर्वक उसका आलिंगन कर लिया। पश्चात् पिता पुत्र सजाये हुए बाजार वाले और दौड़ा दौड़ करते हुए गिर जाते, एकत्रित हुए लोगों के समूह से भरे हुए नगर में हर्ष से प्रवेश करने लगे।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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