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प्रतिक्रमण की विधी
अथवा छः शुद्धि ये हैं: - श्रद्धा, जाणणा, विनय, अनुभाषण, अनुपालन और भावशुद्धि ।
प्रतिक्रमण की विधि पूज्य पुरुष इस भांति बता गये हैं ।
प्राभातिक प्रतिक्रमण की विधि :
इरियाही प्रतिक्रमण कर, कुस्वप्न का कायोत्सर्ग कर जिन और मुनि को वन्दन कर स्वाध्याय करना । पश्चात् सव्वरसवि बोल कर शक्रस्तव बोलना और फिर ज्ञान, दर्शन चारित्र के लिये तीन कायोत्सर्ग करना । उनमें दो में लोगस्स चितवन करना और तीसरे में अतिचारों का चितवन करना । तदनंतर मुंहपति प्रतिलेखन कर, वन्दना कर, आलोयणा सूत्र बोलना तथा वन्दना
और क्षमणा करना |
फिर वन्दना कर तप के लिये कायोत्सर्ग करना । पश्चात् मुहपत्ति प्रतिलेखन कर, वन्दना करके प्रत्याख्यान करना । तलश्चात् इच्छामो अगुसहीं बोल, तीन स्तुति बोल कर बन्दना कर बहुवेल संदिसावी पडिलेहण करना ।
रात्रिक प्रतिक्रमण इस प्रकार हैं:
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जिन और मुनि को वन्दना करके अतिचार शोधनार्थ कायोत्सर्ग करके मुहपत्ति प्रतिलेखन कर, वन्दना कर, आलोचना ले, प्रतिक्रमण सूत्र बोलना | बाद वन्दना, क्षामणा तथा पुनः वन्दना करके चरणादिक की विशुद्धि के हेतु कायोत्सर्ग करना उसमें दो और एक एक लोगस्स का चितवन करना । श्रुतदेवता और क्षेत्रदेवता का एक-एक कायोत्सर्ग करना । मुहपत्ति पडिलेहण कर वदना करना तत्पश्चात् तीन थुई बोल कर नमुत्थुणं कह, प्रायश्चित के हेतु कायोत्सर्ग का सूत्र बोलना ।