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________________ पचक्खाण की विधी २७१ दुर्गति से डरने वाला जो साधु विगई अथवा विकृतिगत को खावे उसको विगई विकृति कारक होने से बलात् दुर्गति में ले जाती है । मधु तीन प्रकार का है :- कुत्तिक, माक्षिक (मक्खीका) और भ्रामर (भ्रमरी का) । मद्य दो जाति का है :काष्ट का और पिष्ट का | मांस तीन प्रकार का है:- स्थलचर पशु का, जलचर मत्स्य आदि का और खग-पक्षियों का । मक्खन घी के समान चार प्रकार का है। ये चारों बिगई अभक्ष्य हैं । - मन, वचन, काय, मनवचन, मन-तन, वचन -तन वैसे ही मन वचन काया से तीन योग इन सात भंगों को करना, कराना व अनुमोदन करना इन भेदों से गुणा करते इक्कीस भेद होते हैं तथा उनको द्वि-द्विक योग से भूत, भविष्य, वर्तमान काल से गुणा करते एक सौ सैंतालिस १४७ भंग होते हैं । ये पश्चक्खाण उक्त काल में खुद मन, वचन और काया से पालना चाहिये | जानकार और जानकार के पास में लेने की चौभंगी है । उसमें तीन भंग से प्रत्याख्यान लेने की अनुज्ञा है । 1 छः शुद्धि ये हैं: - स्पर्शित, पालित, शोधित, तीरित, कीर्तित और आराधित अवसर पर विधिपूर्वक जो पच्चक्खाण लिया, वह स्पर्शित है । वारंवार स्मरण किया, सो पालित है । गुरु को वहोराने के अनन्तर शेष रहा हुआ आहार करना, सो शोधित है । कुछ अधिक समय तक पालना, सो तीरित है । भोजन के समय प्रत्याख्यान का स्मरण करना कीर्त्तित है और इस प्रकार यथारीति पालन किया सो आराधित कहलाता है ।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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