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________________ २७० पञ्चक्खाण की विधी किट्टि और पक्का घी ऐसे घी के पांच निवियाता हैं। दही की पांच निवियाता सो करंब, श्रीखंड, सलूणी दही, छना हुआ दही और घोलबड़ा है। तैल की पांच निवियाता सो तिलपापडी. निभंजन, पक्का तैल, औषधि में पकाया हुआ तैल की तरी और तैल की मली है, गुड़ की निवियाता सो शक्कर, गलवाणी (गुड़ का पानी ), पाक, मिसरी और सांटे का उकाला हुआ रस है। ___एक ही तवा में तला हुआ दूसरा पुडला १ । मूल घी- तैल में तली हुई वस्तु का चौथा घाण २ । गुड़धानी ३ । जल लापसी ४, और पोतकृत पुडलो ५। ये पांच पक्वान्न का निवियाता है। भात के ऊपर चार अंगुल दूध, दही और एक अंगुल द्रवगुड़, घृत, तैल और हरे आंवले के समान पिंडगुड़ की डली वाला चुरमा यह संसृष्ट द्रव्य कहलाता है । द्रव्य से नष्ट हुई विकृति याने कि शालि, चावल आदि से निर्वीर्य को हुई क्षीरादिक विगई तथा वर्णकादिक से नष्ट की हुई ऐसी जो घृतादिक विगई, विकृतिगत कहलाती है तथा भात आदि से नष्ट किया, ऐसा जो विकृतिगत सो हतद्रव्य कहलाता है तथा कढ़ाई में से निकाल लेने के अनन्तर बचा हुआ ठंडा हुआ जो घी उसमें आटा डालकर हिला कर जो किया जाय सो उत्कृष्ट द्रव्य कहलाता है। ऐसा अन्य आचार्य कहते हैं। वरसोला, तिलसांकली, रायण, केरी, दाखवाणी आदि डोलोया आदि के तैल इन सब को उत्तमद्रव्य कहते हैं अथवा लेपकृत द्रव्य भी कहते हैं । विकृतिकृत, संसृष्ट और उत्तमद्रव्य नीवी में कारण सिवाय खाना नहीं कल्पता, क्योंकि कहा है किः
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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