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________________ पञ्चक्खाण की विधी २६९ खरड़ाये बाद पोंछी हुई डोई आदि लेप है । दूध में बांधे हुए संसृष्ट मांडा बंधी हुई विगई को अलग करने से उत्क्षिप्त होती है, और अंगुली से किचित् चुपड़ा हुआ म्रक्षित कहलाता है । द्राक्ष का पानी लेवाड़ कहलाता है। सोंवीर (कांजी) का पानी अलेवाड कहलाता है । उष्णजल अच्छ कहलाता है। धोवन का पानी और आचाम्ल (खटाई वाला) पानी बहल कहलाता है। दानावाला पानी ससिक्थ कहलाता है और उससे अन्य असिक्थ कहलाता है। पोरिसी, साढ़पोरिसी अवडढ, द्विभक्त ऐसे प्रत्याख्यान पोरिसी के समान ही हैं और अंगुष्ठ, मुष्ठि, ग्रन्थि तथा सचित्तद्रव्य का प्रत्याख्यान अभिग्रह में है। दूध, घी, दही, तेल, गुड़ और पक्वान्न ये छः भक्ष्य विगई हैं, उसमें गाय, भैंस, ऊंटनी, बकरी और भेड का दूध, ऐसे पांच दूध हैं । ऊंटनी के सिवाय चार भांति के घी तथा दही हैं । तिल, सरसों, अलसी और लट्ट ये चार जाति के तैल हैं। (लट्ट-लाट, खसखस समान धान्य का तैल होना चाहिये) द्रवगुड़ और पिंड. गुड़ ऐसा दो जाति का गुड़ है। तैल में तला हुआ और घी में तला हुआ दो जाति का पक्वान्न है। द्राक्ष वाला दूध तो पयसाडी कहलाता है। अधिक चावल वाला दूध खीर कहलाता है । थोड़े चांवल वाला दूध पेया (दूधपाक) कहलाता है । चावल का चूर्ण (आटा) डाल कर दूध की की हुई राब अवलेहि कहलाती है और खटान के साथ दूध, दूट्टी कहलाता है। निभंजण, विसंदण, पकाई हुई वनस्पति और घी की तरी,
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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