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________________ २६८ पचक्खाण की विधी नवकारसी और रात्रिभोजन का पच्चक्खाण मुनियों को चौविहार रूप होते हैं और बाकी के पच्चक्खाण तिविहार वा चौविहार रूप होते हैं। श्रावक को रात्रिभोजन, पोरिसी, पुरिमड्ढ एकाशन आदि दुविहार तिविहार वा चौविहार रूप होती है । ( नौकारसी तो श्रावक को भी चौविहार रूप होती है । ) मूंग, भात, सत्त ू, मांडा, दूध, खाजा, कंद, राब आदि अशन गिने जाते हैं । पान में कांजी, यत्र, केरा व कक्कड आदि का पानी जानो । खादिम में सेके हुए धान्य तथा फल - मेवा जानो । स्वादिम में सौंठ, जीरा, अजवाइन, मधु, गुड़, तम्बोल आदि जानो और गौमूत्र तथा नीम आदि अनाहार हैं। नौकारसी में दो आगार हैं। पोरसी में छ: पुरिमढ्ढ में सात, एकाशन में आठ, एकठाणे में सात, आयंबिल में आठ, उपवास में पांच, पानक में छः, चरिम में चार, अभिग्रह में चार, प्रावरण में पांच और नीवी में नौ वा आठ आगार हैं, किन्तु द्रवविकृति में उत्क्षिप्त विवेक आगार छोड़कर आठ ही आगार हैं । वह भूल जाना अनाभोग है १ । अचानक अपने आप कोई वस्तु मुह में चली जावे वह सहसाकार है २ । बादल के कारण समय ज्ञान न हो, वह प्रच्छन्न काल है ३ । दिविपर्यास हो जावे, दिशामोह है ४ । उग्वाडा पोरिसी ऐसा साधु बोले सो साधु वचन है ५ । शरीर की स्वस्थता समाधि है ६ । संचादिक का कार्य महत्तरागार है ७ । गृहस्थ वा बांदी आदि सागारि आगार है ८ । अंगों को हेरना फेरना आउंटणपसारण कहलाता है ९ । गुरु वा प्राहुणे साधु आने पर उठना गुरु अभ्युत्थान आगार है १० । विधिगृहीत अधिक अन्न के विषय में स्थापन विधि लेते पारिट्ठावणि आगार कहलाता है ११ । यतिओं को प्रावरण में कटिपट्ट का आगार होता है १२ ।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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