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________________ अमरदत्त का दृष्टांत २४५ सड़सठ भेद इस प्रकार हैं:चार सहहणा, तीन लिंग, दश प्रकार का विनय, तीन शुद्धि, पांच दूषण, आठ प्रभावनाए, पांच भूषण, पांच लक्षण । छः प्रकार की यतनाए', छः आगार, छः भावना और छः स्थान इस प्रकार सड़सठ भेद सहित सम्यक्त्व है। . इसके विवरण की गाथाए-जानते हुए के पास आगम का अभ्यास करना, गीतार्थ यतिजन की सेवा करना, सम्यक्त्वहीन पार्श्व स्थादिक तथा कुदर्शनियों का त्याग करना । ये चार सम्यक्त्व की सदहणाए हैं। - तीन लिंग ये हैं:-भूखा जिस भांति घेवर खाने की इच्छा करता है, उसी भाँति शास्त्र सुनने की इच्छा रखना । अनुष्ठान में रुचि रखना तथा देव-गुरु की भलीभांति वैयावृत्य करना। जिन, सिद्ध, प्रतिमा, श्रु त, धर्म, संघ, गुरु, उपाध्याय, साधु तथा सम्यक्त्व इन दश में अवज्ञा व आशातना का त्याग, स्तुति, भक्ति और बहुमान रखना, सो दस प्रकार का विनय है । मन वचन और काया की शुद्धि, सो त्रिशुद्धि है । शंका, काँक्षा, विचिकित्सा, परतीर्थिक प्रशंसा और परतीर्थी के साथ परिचय ये पांच दूषण हैं । प्रावचनी, धर्मकथक, बादी, नैमित्तिक, तपस्वी, विद्यावान, सिद्ध और कवि ये आठ प्रभावक हैं । प्रवचन से गिरते हुए को उसमें स्थिर करना, प्रवचन की प्रभावना करना, भक्ति, कुशलता और तीर्थसेवा ये पाँच भूषण हैं और उपशम, संवेग, निवेद, अनुकंपा और आस्तिक्य ये पांच लक्षण हैं। छः यतनाए इस प्रकार हैं-परतीर्थियों के देव तथा उनकी ग्रहण की हुई जिन प्रतिमाओं को वंदन, नमन, दान, अनुप्रदान,
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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