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सम्यक्त्व पर
भाषण वा संभाषण न करना । राजा, गण, बल, देव, गुरुनिग्रह
और वृत्ति ये छः आगार हैं । सम्यक्त्व धर्ममंदिर का मूल है, द्वार है, प्रतिष्ठा है, आधार है, भाजन है और निधि है । इस प्रकार विचार करना सो छः भावनाए हैं। ____जीव है, वह नित्य है, वह पुण्य पार का कत्ती भोक्ता है, मोक्ष है और उसके उपाय ज्ञानादिक हैं, ये छः स्थान कहलाते हैं। अन्यत्र चार लिंग कहे हैं वे इस प्रकार हैं:- सर्वत्र उचित करना, गुणानुराग, जिनवचन में रति रखना और अगुणी पर मध्यम रहना ये सम्यग्दृष्टि के लिंग हैं। पिता, माता, धन, भाई स्वजन सम्बन्धी और सेवक भी उतना करने को समर्थ नहीं कि जितना यथोचित पालन किया हुआ सम्यक्त्व कर सकता है । जरा खुली हुई आंखों से देखने से हर्षित राजाओं से नमित चक्रवर्ती का पद प्राप्त करना सहज है, किन्तु सम्यक्त्वरत्न दुर्लभ है।
सोचने के साथ ही जहां समस्त अनुकूल अर्थ प्राप्त हो जाते हैं ऐसा देवत्व पाना सहज है किन्तु जीवों को दर्शन प्राप्त होना सुलभ नहीं। त्रिभुवन रूपी सरोवर में फैले हुए कुमतमय विभ्रम में प्रसरित यशवाला इंद्रपद प्राणी प्राप्त कर सकते हैं किन्तु सम्यक्त्व पाना कठिन है । भाग्यवान जन इसको पाते हैं। भाग्यवान ही इसको निरतिचारिता से पालते हैं और उपसर्ग आ पड़ने पर इसे भाग्यशाली जन ही पार पहुंचाते हैं। ___ अतः कल्पवृक्ष और चिंतामणि को जीतने वाला सम्यक्त्व पाकर तू हमेशा इसमें निश्चल मन रख। तो "आपकी शिक्षा स्वीकृत है" यह कहकर गुरु को नमन कर अपने मित्रों के साथ अमरदत्त घर आया । उसे पिता ने पूछा कि-हे वत्स !