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काष्टोष्ठि का दृष्टांत
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असमय घर में आता जाता देख कर क्रोध से लाल नेत्र कर मैना उच शब्द से कल कलाहट करने लगी।
वह बोली कि मेरे सेठ के घर यह कौन निर्लज्ज असमम आता है ? क्या वह सेठ से डरता नहीं ? क्या उसके दिन पूरे हो गये हैं। तब उसे तोता क्षीर समान वचनों से कहने लगा कि-हे मैना ! तू बिलकुल मौन रह जो वना को प्यारा है वही अपना सेठ है।
तब मैना उसे कहने लगी कि-हे पापिष्ठ ! तू अपने जीवन में तृष्णावाला है, स्वामी के घर में अकार्य करने वाले की भी क्यों प्रशंसा करता है ? ____ वह बोला कि-तुझे मार डालेंगे, तो भी मैना चुप न हुई, अतएव उसके कोमल कंठ को उसने पैर से कुचल डाला। इतने में एक समय उस घर में भिक्षा के लिये दो मुनि घुसे, उनमें बड़ा मुनि सामुद्रिक का ज्ञाता होने से छोटे मुनि को कहने लगा कि
इस श्रेष्ठ मुर्गे का सिर जो खावेगा वह राजा होगा, यह बात छिप कर खड़े हुए बटुक ने सुनी । तब वह वना को कहने लगा कि-मुझे शीघ्र ही मुर्गे का मांस दे, तब वह बोली कि-दूसरे मुर्गे का मांस ला देती हूँ तब वह बोला कि-बह, मुझे नहीं चाहिये।
तब महान् पाप के भार से दबी हुई वज्रा ने प्रातःकाल उस चरणायुध (मुर्गे) को मारकर उसका मांस पकाया । उसे तत्व को खबर नहीं थी, इससे उसने उस मुर्गे के सिर का मांस लेखशाला से आकर खाने के लिये रोते हुए पुत्र ही को दे दिया।