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स्त्रीवशवर्ति न होने पर
वह खाकर चला गया, इतने में शीघ्र ही बटुक वहां आया, वह उक्त मांस खाने लगा, किन्तु उसमें मांजरी नहीं देखकर वज्रा को पूछने लगा कि-मांजरी का मांस कहां है ? वज्रा बोली कि-वह तो पुत्र को दे दिया, तब वह बोला कि-जो मेरा काम हो तो पुत्र को भी मार डाल । __ तब उस दुर्गति गामिनी, सुगतिपुर जाने के मार्ग में चलने को पंगु हुई, अविवेक की भूमिका और कामबाण से बिद्ध हुई । और लज्जा-मर्यादा-विहीन वज्रा ने यह भी स्वीकार किया, यह बात सागरदत्त की धाय माता ने सुनी।
जिससे वह उसे कमर पर उठाकर चंपापुरी में भाग आई, वहां उस समय राजा अपुत्र मर गया था जिससे पंच दिव्य किये गए । उन दिव्यों से संपूर्ण पुण्य के उदय से सागरदत्त राज्य पर अभिषिक्त हुआ, वह बड़े २ सामंतों से नमन कराता हुआ स्वस्थता से राज्य पालन करने लगा।
वह धाय माता द्वारा कमर पर लाया गया था इससे वह धात्रीवाहन नाम से प्रसिद्ध हुआ। इधर कामासक्त वज्रा ने घर का सार उड़ा देने से सब नौकर चाकर सीदाते हुए इधर उधर लग गये। ___ इतने में काष्ट सेठ बहुत सा द्रव्य उपार्जन करके अपने घर आया, वह घर की दशा देख विस्मित हो वसा को पूरने लगा कि-हे प्रिया ! पुत्र कहां है ? धाय कहां है ? वह मैना कहां है ? धन कहां है ? वह मुर्गा कहां है ? और नौकर चाकर कहां हैं ?
ऐसा पूछने पर भी उसने कुछ भी उत्तर नहीं दिया, तब कष्ट से काष्ठपिंजर में बंद तोते से उसने पूछा । तब उसने अपनी