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________________ अर्थकुशल का स्वरूप वे बैल सुकुमार होने से टूट गये (संधियां टूट गई ) तो उसने उन्हें सेठ के घर लाकर बांध दिये उन्होंने पीड़ा से आकुल होकर घास पानी खाना बंद कर दिया। तब सेठ को इस बात की खबर होते ही उसे नाना मांति से पश्चाताप करके, उनको विधिपूर्वक अनशन कराकर नमस्कार मंत्र दिया। - वे बैल मरकर शुभ भाव से महर्द्धिक नागकुमार देव हुए और सेठ भी अध्ययन और ध्यान में लीन हो मरकर सुगति को गया। इस प्रकार जिनदास उत्तम भांति से परोपकार करता हुआ सूत्र पठन में तैयार रहता था, अतः जगत् का प्रकाश करने में सूर्य समान ज्ञानाभ्यास में हे भयो ! तुम प्रयत्न करो। . इस प्रकार जिनदास की कथा है। . इस प्रकार प्रवचनकुशल का सूत्रकुशलरूप प्रथम भेद कहा। अब अर्थ-कुशल रूप दूसरा भेद कहने के हेतु दूसरा पद कहते हैं। सुणइ तयत्थं तहा मुतित्थंमि । मूल का अर्थ-वैसे ही सुतीर्थ में उसका अर्थ सुने । टीका का अर्थ-वैसे ही याने अपनी योग्यता के अनुसार सुतीर्थ में याने सुगुरु के पास उसका याने सूत्र का अर्थ सुने, क्योंकि कहा है कि-तीर्थ में सूत्र और अर्थ का ग्रहण करना, वहां तीर्थ सो सूत्रार्थ के ज्ञाता गुरु जानो, विधि सो विनयादिक औचित्य संपादन करना। यहां आशय यह है कि -ऋषिभद्र पुत्र के समान भाव श्रावक ने संविग्न और गीतार्थ गुरु से शास्त्र सुनकर प्रवचन के अर्थ में कुशलता प्राप्त करना।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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