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________________ ऋषिभद्र पुत्र की कथा १७५ ऋषिभद्र-पुत्र की कथा इस प्रकार है। इस जंबुद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र के मध्यम खंड में आलभिका नामक नगरी थी, जो कि कभी भी शत्रुओं से जीती नहीं गई थी, वहां सुगुरु के प्रसाद से बहुत से वचनों के अर्थ का ज्ञाता चतुर ऋषिभद्र-पुत्र नामक श्रावक था। ___ वहां दूसरे भी बहुत से श्रावक रहते थे, वे आपत्ति में भी धर्म में दृढ़ रहते थे। उन्होंने मिलकर एक समय ऋषिभद्र-पुत्र को पूछा कि-हे देवानुप्रिय! हमको तू देवताओं की स्थिति कह सुना, तब वह भी प्रवचन में कहे हुए अर्थ में कुशल होने से इस प्रकार बोला असुर, नाग, विद्युत्, सुवर्ण, अग्नि, वायु, स्तनित, उदधि, द्वीप, दिशा, इस प्रकार दश तरह के भवनपति हैं । पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किनर, किम्पुरुष, महोरग, गंधर्व ये आठ प्रकार के वाण व्यंतर हैं । चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे ये पांच ज्योतिषक देव हैं। वहां कल्पवासी इस प्रकार हैंसौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लातंक, शुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत (ये बारह प्रकार के वैमानिक वा कल्पवासी देव हैं) __कल्पातीत इस प्रकार हैंसुदर्शन, सुप्रतिबद्ध, मनोरम, सर्वभद्र, सुविशाल, सुमनस्, सौमनस, प्रीतिकर और नंदिकर ये नव वेयिक तथा विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध ये पांच अनुत्तर विमान, इनमें जो देव हैं वे कल्पातीत हैं।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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