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________________ जिनदास का दृष्टांत १७३ दासी नामक स्त्री थी। उन्होंने यावज्जीवन पर्यन्त चतुष्पद का त्याग किया था, जिससे गोरस मालिक का दिया हुआ वे ग्वाल के हाथ ही से लेते थे । अब ग्वालों के साथ आने जाने से उनकी प्रीति हो गई, तब किसी विवाह प्रसंग पर ग्वालों ने उक्त सेठ को निमंत्रण भेजा । तब सेठ कामकाज की अधिकता से यद्यपि स्वयं वहां नहीं गया, तथापि उसने वहां बहुत से वेष- अलंकार तथा उत्तम वस्त्र भेजे । जिससे ग्वालों की बहुत शोभा बढ़ी और वे प्रसन्न होकर सेठ को कम्बल व सम्बल नाम के दो बछड़े देने लगे । सेठ बोला कि मेरे चतुष्पद का नियम है। किन्तु तो भी वे आग्रह पूर्वक सेठ के घर उनको बांध कर चले गये । अब सेठ विचार करने लगा कि- जो मैं इनको जोनूंगा, तो दूसरे लोग भी इनको इच्छानुसार जोतेंगे, इसलिये भले ही ये यहां खड़े रहें । अब सेठ प्राशुक खाद्य, घांस व छने हुए पानी से स्वयं ही उनका पालन करने लगा | वह सेठ अष्टमी और चतुर्दशी के दिन उपवास करने लगा तथा वह पुस्तक पढ़ता व नित्य नया अध्ययन भी करता जिसे सुन-सुनकर वे संज्ञावान (समझदार ) भले बैल उपशांत हुए. जिससे जिस दिन निस्पृह जिनदास उपवास करता, उस दिन बे भी शुद्ध मन से आहार का त्याग करते। इससे सेठ को भी उनमें बहुमान और अधिक स्नेह हुआ और वे भी भद्रक भाव वाले होने से उपशांत हुए । अब एक दिन उस श्रावक के मित्र ने उससे पूछे बिना भंडी रमण की यात्रा में उनको अपनी गाड़ी में जोता । उसे विस्मय हुआ कि - ऐसे बैल और किसी के नहीं हैं, इससे उसने भिन्न २ गाड़ीवालों के साथ उन बैलों को बहुत सी बार दौड़ाये ।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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