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________________ सुमित्र का दृष्टांत का स्थान है । तब राजा'आतुर होकर बोला कि- जब तक यह बात बाहिर फैली नहीं, तब तक इसे शीघ्र गुपचुप मार डालो। मंत्री ने यह बात स्वीकार की, पश्चात् राजा ने अपनी पुत्री को एकांत में पूछा कि- तेरे पति ने कोई अकुलीनता का विचार सत्य किया है (प्रकट किया है)? वह बोली कि-चन्द्रमा में तो कलंक है पर मेरे पति में तो वह भी नहीं । वह तो दूसरे का गुह्य सम्हालने में केवल गुणमय-मूर्ति है। इतने में सुबुद्धि मंत्री ने अपने विश्वस्त मनुष्यों के द्वारा नाटक देखने के भिष से सुमित्र को संध्या समय अपने यहां बुलवाया। . किन्तु पुण्य के बल की प्रेरणा से सुमित्र ने उस समय अपना वेष व मित्र को पहिरा कर वहां भेजा, उसे सुबुद्धि के मनुष्यों ने मार डाला। यह जानकर राजा दुःखी होने लगा कि- मेरी पुत्री का अब क्या होगा? इतने में वह आकर पूछने लगी कि- पिताजी! यह क्या बात है ? राजा बोला कि- मैं तेरे वैधव्य का करने वाला पापी हूँ। तब वह बोली कि- आपके जमाई तो घर पर बैठे हैं। यह सुनकर राजा के सुमित्र को एकान्त में पूछने व आग्रह करने पर उसने वसुमित्र का सर्व वृत्तान्त कह सुनाया। तब राजा विचार करने लगा कि-अहो ! इसका मैत्री-भाव देखो और मत्सरभीरता तथा धर्म में सुस्थिरता देखो। . - यह सोच विस्मित हो राजा मंत्री व पौरजनों को कहने लगा कि- सुमित्र का चित्त सचमुच मित्रता वाला है। तदनंतर सुमित्र ने हर्षित होकर अपने माता पिता को वहां बुलाये और राजा ने बड़ी धूमधाम से उनका नगर में प्रवेश कराया। माता पिता के
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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