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________________ १५४ सद्भाव से मित्रता पर मंडल आदि करके उन पत्तों के रस से मदनरेखा को नेत्रों की पीड़ा से रहित की । तब राजा ने अपनी उक्त पुत्री का विवाह उससे करके आधा राज्य दिया, वहां वह स्वस्थ रहकर सबका हित करता हुआ रहने लगा । अब वहां वसुमित्र भी व्यापार के हेतु वहाण पर चढ़कर वहां आ पहुँचा, वह भारी भेट लेकर राजा के पास आया । तब सुमित्र को अतुल राज्यलक्ष्मी संपन्न देखकर आप मित्रता न होने से मन में डरकर इस प्रकार विचारने लगा- जो यह सुमित्र यहि किसी प्रकार मेरा वृत्तान्त राजा को कह देगा तो मेरा सर्वस्व नष्ट हो जावेगा । अतएव किसी भी उपाय से इसे मार डालना चाहिये। यह सोचकर वह भेट देकर राजा के समीप बैठ गया । पश्चात् एकान्त जानकर वह कपट से सुमित्र के घर में गया, वहां उन दोनों ने परस्पर कुशल समाचार पूछा । इतने में वसुमित्र ने कहा कि - हे सुमित्र ! कुछ दिनों तक तुमने राजा को मेरा परिचय मत देना सुमित्र ने यह बात स्वीकार की । अब एक दिन वसुमित्र गुपचुप राजा के पास जाकर विनन्ती करने लगा कि - हे देव ! यद्यपि सज्जन पुरुष ने पराये दोष नहीं कहना चाहिये, तथापि स्वामी को भारी हानि न हो ऐसा सोचकर कहता हूं कि - यह आपका जामाता हमारे ग्राम में एक डोम वैद्य का पुत्र था। यह सुन राजा वज्राहत की भांति दुःखी हुआ और उसने सकल वृत्तान्त सुबुद्धि मंत्री को कह सुनाया । मंत्री बोला कि - हे देव ! जो ऐसा है तो बड़ा अपयश फैलेगा क्योंकि आपको यह नगरी द्वीनों के मध्य में आई हुई व व्यापारियों
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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