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________________ जयंती श्राविका का दृष्टांत १२१ पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति. ये पांच स्थावर हैं। द्वीन्द्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय. ये चार त्रस हैं। इस प्रकार सब मिलाने से नव विध जीव हैं। _____ एकेन्यि दो जाति के सूक्ष्म और बादर -पंचेन्द्रिय दो जाति के-संज्ञि और असंज्ञि-तथा द्वीन्द्रिय, त्रिन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय मिलकर सात पर्याप्त और सात अपर्याप्त. इस प्रकार चवदह भेद हैं। ___ सूक्ष्म व बादर पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु तथा अनंतवनस्पति प्रत्येक वनस्पति, तीन विकलेंद्रिय, संज्ञि, असंज्ञि, पंचेन्द्रिय. ये सोलह पर्याप्त व सोलह अपर्याप्त मिलकर बत्तीस प्रकार के जीव होते हैं। ये बत्तीस शुक्लपाक्षिक और बत्तीस कृष्णपाक्षिक अथवा भव्य व अभव्य गिनें तो चौंसठ प्रकार के जीव होते हैं अथवा कम प्रकृतियों के भेद से अनेक प्रकार के जीव माने जाते हैं । अजीव पांच हैं - धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल. जिनमें प्रथम चार अक्रिय व अरूपी हैं और पुद्गल रूपी हैं। उनके भेद, लक्षण, संस्थान, प्रमाण और अल्पबहुत्व से क्रमशः तीनतीन, तीन, एक और चार इस भांति चउदह भेद हैं। .धर्मास्तिकाय रूप सम्पूर्ण द्रव्य सो स्कंध, उसका अमुक विवक्षित भाग सो देश और छोटे से छोटा अविभाज्य भाग सो प्रदेश । इस भांति अधर्म और आकाश के भी तीन भेद जानो। काल निश्चय से गिनें तो, भाव परावृति का हेतु अर्थात् पदार्थों के नये जूनेपन का हेतु एक ही है । व्यवहार से गिन तो, सूर्य की गति से माना जाने वाला समय आदि अनेक प्रकार का है। व्यवहारिक काल के भेद इस प्रकार हैं - समय, आवलिका, मुहूर्त, दिवस, अहोरात्रि, पक्ष, मास, संवत्सर, युग, पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी और पुद्गल परावर्ग ।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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