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________________ जिनवचन रुचि पर पुद्गल का समूह याने स्कंध, देश, प्रदेश तथा परमाणु ऐसे पुद्गल के चार भेद हैं । परमाणु वह सूक्ष्म होता है और उसको दो स्पर्श, एक वर्ण, एक रस तथा एक गंध होती है । यह भेद द्वार हुआ, अब लक्षण द्वार कहते हैं १२२ गति परिणत पुद्गल और जीव की गति में सहायक धर्मास्तिकाय है । वह जलचर जीवों को जिस तरह जल सहायक हैं, उसी तरह गमन करने में सहायक है। स्थिति परिणत पुद्गल और जीव की स्थिति में सहायक अधर्मास्तिकाय है । वह पथिकों को घनी तरु छायां के समान स्थिर रहने में सहायक है । सब का आधार, सब में व्याप्त और अवकाश देने वाला आकाश है और भावपरावृत्ति लक्षण से अद्धा द्रव्य (काल) जानो । छाया, आतप, अंधकार आदि पुद्गलों का लक्षण यह है किवे उपचय, अपचय पाने वाले हैं, लिये छोड़े जा सकने वाले हैं। रस, गंध, वर्ण आदि वाले हैं इत्यादि । लक्षण द्वार कहा, अब संस्थान द्वार कहते हैं धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय लोक के आकार वाले हैं। काल वर्त्तना रूप संस्थान रहित है - वह द्रव्य का पर्याय है तो भी उपचार से द्रव्य माना जाता है। अलोकाकाश शुषिर वर्तुल गोल आकार वाला है और लोकाकाश वैशाख स्थित ( चौड़े पग करके खड़े हुए) और कमर पर हाथ रखने वाले मनुष्य के समान है । अचित महास्कंध लोक के आकार वाला और आठ समय पर्यंत रहने वाला है शेष पुद्गल अनेक आकार के हैं और उनकी संख्याती असंख्याती स्थिति होती है । इस प्रकार संस्थानद्वार कहा, अब प्रमाणद्वार कहते हैं
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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