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सुदर्शन सेठ की कथा
सुनना ) यहां व्रतश्रवण तो उपलक्षणरूप है उससे अन्य भी आगम आदि का श्रवण समझ लेना चाहिये यह एक व्रतकर्म है । सुदर्शन सेठ की कथा इस प्रकार है:--
दीर्घ अक्षिवाले निर्मल रत्न से सुशोभित तथा अलक ( केश ) से युक्त स्त्री के मुख समान दीर्घ रथ्या ( लम्बे रास्ते वाला ) और अति निर्मल रत्न ऋद्धि से भरपूर होकर अलिक ( खोटी ) श्री ( धूमधाम ) से रहित राजगृह नामक नगर था। वहां द्रव्य गुण कर्म समवायवादि वैशेषिक के समान अत्यन्त द्रव्यवान, अत्यंत गुणवान, समवाय (संप ) में तत्पर और श्रेषु कर्म में मन रखने वाला श्रेणिक नामक राजा था । वहीं अति धनवान् अर्जुन नामक माली निवास करता था । उसकी सुकुमार हाथ पांव वाली बंधुमति नामक स्त्री थी । वह अर्जुन माली प्रतिदिन नगर के बाहर स्थित अपने कुल देवता मुद्रापाणि नामक यक्ष को उत्तम पुष्पों से पूजता था ।
वहां ललिता नामक गोष्टी ( मंडली ) थी वह शौकिन व धनाढ्य लोगों की थी । उस नगर में एक समय कोई महोत्सव आया । तब अर्जुनमाली ने विचार किया कि, कल फूल का मूल्य अच्छा आवेगा यह सोच वह स्त्री सहित वहां प्रातःकाल ( होते ही ) आ पहुँचा । वह ज्योंही हर्ष के साथ यक्ष के गृह में फूल लेकर घुसा, त्योंही उक्त घर के बाहिर स्थित गोष्टिल पुरुषों ने उसे देखा। वे एक दूसरे को कहने लगे कि, यहां अर्जुनमाली बंधुमतो. सहित आता दिखता है । अतः हम ऐसा करें तो ठीक है कि, इसे बांधकर इसकी स्त्री के साथ भोगविलास करें यह बात सबने स्वीकार की ।
तब वे किवाड़ के पीछे चुपचाप छिप रहे, इतने में अर्जुनमाली वहां आकर एकाग्र हो यक्ष को पूजने लगा । अब वे