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उपदेश के योग्य-अयोग्य
हेतु सुने किन्तु बताने वाले पर बहुमान रखने वाला नहीं होता है क्योंकि वह भारी कर्म वाला होने से दूसरा बहुमान वाला होता है किन्तु शक्ति विकल होने से विनय नहीं करता है वह रोगी आदि है। तीसरा कल्याण कलाप को शीघ्र पानेवाला होने से सुदर्शन सेठ के समान विनय तथा बहुमान पूर्वक सुनता है। चौथा अतिभारी कर्मी होने से विनय और बहुमान इन दोनों से रहित होकर सुनता है ऐसे व्यक्ति को आगमानुसारी प्रवृति करने वाले गुरु ने ( कुछ भी ) कहना उचित नहीं। .. श्री स्थानांग सूत्र में कहा भी है कि:--चार जने वाचना देने के अयोग्य है यथा अविनीत, विकृतिरसिक, अविज्ञोषितप्राभृत व अति कषायी।.
तथा (ग्रथांतर में कहा है कि) सामान्यतः भी आदेशानुसार विभाग करके जो विनीत हो उसे मधुर वाणी से ज्ञानादिक की वृद्धि करने वाला उपदेश देना।
अविनीत को कहने वाला (व्यर्थ ) क्लेश पाता है और मृग ( निष्फल ) बोलता है घंट बनने के लौह से कट बनाने को कौन हैरान होता है ?
अतः विनय और बहुमान पूर्वक जो व्रत श्रवण करता है वह (भाव श्रावक) किससे सुने सो कहते हैं गीतार्थ से वहां ।
गीत याने सूत्र कहलाता है, और उसका जो व्याख्यान सो अर्थ । अतः जो गीत और अर्थ से संयुक्त हो वह गीतार्थ कहलाता है। - गीतार्थ के अतिरिक्त अन्य तो कभी असत्य प्ररूपणा भी कर देता है, जिससे विपरीत बोध होता है ( अतः गीतार्थ से