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सुदर्शन सेठ की कथा
एकदम निकलकर उसे बांध बंधुमति के साथ रमण करने लगे। यह देख अर्जुनमाली अति क्रोध से विवश हो विचारने लगा किमैं इस यक्ष को नित्य उत्तम पुष्पों से पूजता हूँ। ___ जो इस मूर्ति में वास्तव में कोई यक्ष होता तो मैं इस भांति पर परिभव नहीं सहता अतः निश्चय यह पत्थर ही है । तब यक्ष को अनुकंपा आने से वह उसके शरीर में प्रविष्ट हुआ, जिससे उसने बंधन को कच्चे सूत की भांति तड़ से तोड़ डाला । पश्चात् सहस्र पल याने वर्तमान तौल से अनुमान अढ़ाई मन का लोहे का मुद्गर अपने हाथ में लेकर उसने अपनी स्त्री सहित छः पुरुषों को एक ही झपाटे में मार डाला । इस भांति नित्य वह अर्जुन माली छः पुरुष व एक स्त्री. मिलकर सात हत्याएँ करता रहा । क्रमशः यह बात नगर में फैल गई। जिससे राजा श्रेणिक ने नगर में उद्घोषणा कराई कि-हे नगर वासियों ! जब तक अर्जुनमाली ने सात व्यक्तियों को न मार डाला हो तब तक शहर के बाहर न निकलना चाहिये । उसी समय में चरम जिनेश्वर श्री वीरप्रभु का वहां आगमन हुआ, किन्तु भय के कारण से कोई भी उनको वन्दन करने के लिये नहीं निकला। अब वहां निर्मल सम्यक्त्ववान् और अति धर्मार्थी सुदर्शन नामक सेठ था, वह जिनवाणी सुनने में रुचिवान् तथा नव तत्त्व के विचार जानने में कुशल था । वह श्री वीरप्रभु के वचनामृत का पान करने को उत्सुक होने से अपने माता पिता के पास जाकर, उनको नमन करके सम्यक रीति से ऐसा कहने लगा
हे माता पिता ! आज यहां वीर जिनेश्वर पधारे हैं, इसलिये उनको नमन करने तथा उनकी देशना सुनने को मैं शीघ्र ही वहां जाना चाहता हूँ।