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________________ ११४ विनय करने पर पुष्पसालसुत का दृष्टांत अब एक समय वह ग्राम का स्वामी उसे साथ लेकर राजगृह नगर में अभयकुमार के पास आया, और उसका भारी विनय करने लगा । तब पुष्पसालसुत उसे पूछने लगा कि-हे स्वामिन् ! यह कौन है ? तब वह बोला कि-यह श्री श्रोणिक राजा का पुत्र है, और यह अपने गुरुजनों का अत्यन्त विनय रखने वाला है। तथा वह सजन रूप वन को संतुष्ट करने में मेघ समान है, उत्तम लोगों में प्रथम माना जाता है, देश के लोगों को शान्ति में रखने वाला राजमंत्री है, और उसका नाम अभयकुमार है । यह सुनकर पुष्पसालसुत उसकी (ग्राम स्वामी की) आज्ञा लेकर अभयकुमार की सेवा में लगा। और प्रतिदिवस उसका सुवर्ण के समान पवित्र विनय करने लगा। अब प्रातःकाल के समय अभयकुमार हर्ष पूर्वक राजा के चरणों में नमन करने लगा । तब वह पूछने लगा कि-हे स्वामिन् ! आप को भी पूज्य ये कौन हैं ? , अभयकुमार बोला कि-हे पुष्पसालसुत ! जगद्विख्यातयशवाला, अरिदल को झुकाने वाला, प्रसेनजित राजा का पुत्र, संसार के मूल कारण मिथ्यात्वरूपी सुभट के भटवाद को भंग करने में वीर योद्धा, वीरप्रभु का चरण भक्त और मेरा पिता यह श्रेणिक नामक राजा है। यह सुन वह प्रसन्न हो विनय पूर्वक मंत्री की आज्ञा लेकर राजहंस के समान श्रेणिक राजा के चरणकमल की सेवा करने लगा। अब वहां वीरप्रभु का आगमन हुआ, उनको वंदन करने के लिये श्रेणिक राजा चला । तब वह पूछने लगा किहे स्वामी ! ये आपके भी पूजने योग्य और कौन योग्य पुरुष है।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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