________________
पुप्पसालसुत का दृष्टांत
टीका का अर्थ – सन्मुख उठना सो अभ्युत्थान, वह आदि
सो अभ्युत्थानादि कहलाता है आदि शब्द से संमुख जाना इत्यादि समझना चाहिये क्योंकि कहा है कि
A
F
११३
देखते ही उठकर खड़ा होना, आते देखकर उनके सन्मुख जाना, तथा मस्तक पर अंजली बांधना हाथ जोडना और स्वतः अपने हाथ से आसन देना, इस भांति विनय करना चाहिये । गुरुजन के बैठने के बाद बैठना, उनको वन्दन करना, उनकी उपासना करना और जावे तब पहुँचाने जाना, इस भांति आठ प्रकार से विनय होता है ।
ऐसा विनय अर्थात् प्रतिपत्ति नियम से याने निश्चय से करना चाहिये ( किसकी सो कहते हैं ) गुणी याने विशेष गौरव रखने योग्य हों उनकी पुष्पसालसुत के समान ।
पुष्पसालसुत की कथा इस प्रकार है
UNREASO
मगध देशान्तर्गत गुब्बर ग्राम में पुष्पसाल नामक गृहपति था और भद्रा नामक उसकी स्त्री थी । उनको स्वभाव ही से विनय करने में उद्यत पुष्पसालसुत नामक पुत्र था उसने एक दिन धर्मशास्त्र पाठक के मुंह से सुना कि
विघटिततम वाले अर्थात् ज्ञानवान् उत्तम जनों का जो निरन्तर विनय करता है वह उत्तम गुण पाकर सर्वोत्तम स्थान पाता है । यह सुन कर वह रात्रि दिवस महान् भक्ति से माता पिता का यथा योग्य विनय करने लगा ।
उसने एक समय अपने मातापिता को ग्राम के स्वामी का विनय करते देखा, उसे देख वह विचार करने लगा किग्राम का स्वामी मातापिता से भी उत्तम जान पड़ता है, जिससे वह उसकी सेवा करने लगा ।