SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नन्द सेठ की कथा पश्चात् जिनेश्वर को पूजन व नमन करके अन्य वन्दन करने वाले लोगों के स्वस्थान को चले जाने पर नंद सेठ विधिपूर्वक देव को वंदन करके इस प्रकार स्तवन करने लगा। जिन स्तुति हे स्वामिन् ! हे जिनवर ! आप की जय हो आप केवलज्ञान से वस्तु का परमार्थ जानते हो आप मस्तक पर धारण की हुई मणियों की किरणों से दीप्तिमान सैकड़ों इन्द्रों द्वारा नमित हो । आप के शरीर को मल रोग नहीं होते, आप का भामंडल चन्द्र समान दीप्तिमान है, आप लयप्राप्त ध्यान से शोभित हो, आप सकल सत्त्वों को हितकारी हो । __अपार भव समुद्र में लाखों भव भटकते भी दुर्लभ आपका दर्शन पाकर मैं अपने को धन्य मानता हूँ. चक्रवर्ती-असुरराजा तथा विद्याधरों की लक्ष्मियां मिलना सुलभ है, किन्तु हे प्रभु! आपके कहे हुए तपश्चरण तथा नियम रूप ऋद्धि मिलना दुर्लभ है। हे देव ! आपकी पूजा दारिद्य दुःख की नाशक है, सुख उत्पन्न करने वाला है, दुःखों को नष्ट करने वाली है और जीवों को संसारसमुद्र पार उतारने में नौका समान है, हे त्रिभुवन प्रभु ! आपके चरणकमल का वंदन चंदन के समान है, उसे प्राप्त करके, भव संताप का श्मन करके भव्य जन शान्ति प्राप्त करते हैं। हे स्वामिन् ! आप अपूर्व कल्पतरु हो अथवा अपूर्व चितामणि हो, क्योंकि-हे प्रभु! आप अनिश्चित स्वर्ग मोक्ष का सुख देते हो. देवेन्द्र, मुनीन्द्र और नरेन्द्रों से वंदित हे जिनेन्द्र ! मेरे मनको आप अपनी निर्मल आज्ञा का पालन करने में लोलुप करिये। इस प्रकार उसने स्तुति की, इतने में वहां संगमसूरि पधारे,
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy