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________________ १०८ नियम करने पर स्वाध्याय व आवश्यक करता और दिन के प्रथम प्रहर में आगम के रहस्य को विचारता । दूसरे प्रहर में समीप के ग्राम में जाकर सद् व्यवहार पूर्वक मिर्च मसाला बेचकर वह भोजन के योग्य धन उपार्जन करता। पश्चात् घर आ नहा-धोकर पवित्र हो अपने जिनभवन में जा कर सुगन्धित द्रव्यों से जिनेन्द्र की पूजा करके चैत्यवंदन करता। इसके अनन्तर सम्यक् रीति से कर्म विपाक जानता हुआ वह अपने हाथ से रसोई तैयार करता व जीमकर, विचार कर विधि पूर्वक संवरण याने दिवस चरिम का प्रत्याख्यान ले लेता पश्चात् संध्या के समय अपना वीर्य गोपन किये बिना आवश्यकादि क्रिया करता. इस भांति नंद सेठ निश्चयतः प्रतिदिन दिनकृत्य करता। ___ अब एक समय भव्य जनों को आनन्द देने वाले अष्टाह्निका ( आठ दिन तक रहने योग्य ) महोत्सव आने पर वह उपवास करके जिन मंदिर को गया. इतने में वहां बैठी हुई एक मालिन ने उसको तीक्ष्ण सुगन्धि युक्त फूलों की चौलड़ो माला दी. तब वह बोला कि-इसका मूल्य क्या है ? वह बोली कि-हे आनन्दरूपी समुद्र बढ़ाने में चन्द्र समान नंद सेठ ! मूल्य की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि आप की कृपा ही से हमारा यह ठाठमाठ चलता है. ऐसा कहने पर भी उसने उक्त मौरुले (जाति विशेष ) के फूल नहीं लिये. तब मालिन ने विनय पूर्वक उसका मूल्य आधा रुपया कहा। तब फूल का मूल्य लेकर हर्षित हो उक्त चौलड़ी पुष्पमाला लेकर जिन मंदिर में जा भक्ति पूर्वक जिनेंद्र की अर्चा करने लगा.
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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