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________________ नन्द सेठ की कथा १०७ बनवाया । उसमें श्री वीर प्रभु के मनोहर बिंब की भली-भांति प्रतिष्ठा कराई, साथ ही जिन-प्रवचन की रक्षा करने में तैयार रहने वाले ब्रह्मशांति यक्ष की प्रतिष्ठा कराई। ___ पश्चात् जिनेश्वर की पूजा करके उसने ऐसा कठिन नियम लिया कि-हे देव ! जब तक आपकी पूजा न करूगा तब तक मैं भोजन नहीं करूंगा। इस प्रकार शुद्ध मन से दुष्कर तप नियम में लीन व नित्य जिन-पूजा में उद्यत, वैसे ही मुनि-जन को वंदन करने में तत्पर रहकर उसने बहुत सा काल व्यतीत किया । पूर्व कर्म के वश एक समय उसका वैभव चला गया, जिससे वह अपने स्वजन सम्बन्धी जनों व सेवकों को अप्रिय होगया । पवित्र वृत्ति (आचार ) होते हुए वित्त (धन) चला जाने से उसके पुत्र भी उसकी निन्दा करने लगे, स्त्री भी अवहेलना करने लगी तथा बहुएँ भी कटकट करने लगी। पुत्र कहने लगे कि- अरे महा मूढ बुड्ढे ! तू ज्यों-ज्यों जिन धर्म करता है, त्यों-त्यों भयानक दारिद्य रूप वृक्ष तेरे घर में फल रहे हैं। ___तब वह महात्मा बोला कि- ऐसी असमंजस (अन समझी) बात न बोलो, क्योंकि सब कोई पूर्वजन्म में किये हुए कर्म का फल भोगते हैं । इस प्रकार युक्तिपूर्वक उसके पुत्रों को समझाते हुए भी उन्होंने क्रोध से संतप्त होकर नीति मार्ग को तोड़ नन्द सेठ को अपने से अलग कर दिया। तो भी वह महाभाग नन्द सेठ अकेला होकर रहते भी लेशमात्र खिन्न न होकर घर के एक कोने में रहकर पूर्व की भांति ही धर्म में लीन रहता था । वह रात्रि के अन्तिम प्रहर में विधिपूर्वक
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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