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विधिपूर्वक स्वाध्याय करने पर
धर्म कथा की विधि यह है कि- गुरु के प्रसाद से जो शुद्ध धर्मोपदेश यथा रीति समझा हो व अपने को और दूसरों को जो उपकारक हो वह केवल धर्मार्थी होकर योग्य जन को कहना।
श्येन सेठ की कथा यह है-- यहां कंचन से चकचकित चैत्य गृह (जिनमंदिर) से सुशोभित कांची नामक नगरी थी। वहां श्येन नामक सेठ था और उसकी कुवलयमाला नामक स्त्री थी। उनके तीन पुत्र थे, उस सेठ के घर एक दिन मासक्षमण के पारणे चतुर्ज्ञानी साधु भिक्षा के लिये आये।
तब सेठ सत्त का थाल लेकर शीघ्र ही उनको वहोराने के लिये उठा, यह देख. मुनि बोले कि इसमें सूक्ष्म जीव हैं, अतः मुझे नहीं कल्पता । सेठ बोला कि-इसका क्या निश्चय है ? तब मुनि ने लाल रंग से रंगे हुए रूई के फोहे उसके आसपास रखवाकर, उस उपाय से उसमें उन्होंने उस सन ही के वर्ण के सूक्ष्म जंतु बता दिये।
तब सेठ तीसरे दिन का दही उन्हें देने लगा, उसमें भी मुनि ने उसी प्रकार जीव बताये। तब सेठ ने उनके सन्मुख लड्डुओं से भरा हुआ थाल रखा।
उसे देख मुनि बोले कि ये विष मोदक हैं, सेठ बोला किकिस प्रकार ? मुनि बोले कि-हे सेठ ! देखो ! इस पर जो मक्खी बैठती है वह मर जाती है।
तब सेठ विस्मित होकर बोला कि-इसमें विष किसने मिलाया सो कहिये । तब वे महान् साधु बोले कि कल तुम्हारी जो दासी मर गई है उसने मिलाया है।