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स्वाध्याय नामक प्रथम गुण
अर्थात् मजबूत रुचि-इच्छा-अर्थात् श्रद्धान धारण करे सो पांचवा गुण है।
इस प्रकार गणना से पांचों गुण बताकर अब उनका भावार्थ द्वारा विवेचन करने के हेतु प्रथम स्वाध्याय भी आधी गाथा से कहते हैं -
पढणाई सज्झायं वेरग्गनिबंधणं कुणइ विहिणा। मूल का अर्थ-विधिपूर्वक वैराग्यकारक पठन आदि स्वाध्याय करे । ____टीका का अर्थ- पठन अर्थात् अपूर्व श्रुत ग्रहण - आदि शब्द से प्रच्छन, परावर्जन, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा ग्रहण करना चाहिये उसका यह अर्थ है कि- पांचों प्रकार का स्वाध्याय करे। स्वाध्याय कैसा सो कहते हैं- वैराग्य निबंधन याने वैराग्य का कारण - विधि पूर्वक अर्थात् शास्त्रोक्त विधि से श्येन शेष्ठि के समान । वहां पठन विधि इस प्रकार है:-- ___ गुरु के पास सीखते समय पर्यस्तिका ( पलाठी), अवष्टंभ (ओठींगण), पाद प्रसारण और विकथा व हास्य का वर्जन करना. पृच्छा-पूछने की विधि यह है कि-आसन वा शय्या में रहकर नहीं पूछना, किन्तु आकर उत्कुटुकासन से बैठ कर हाथ जोड़ कर
पूछना चाहिये।
. परावर्चन की विधि यह है कि-श्रावक ने ईर्यावही प्रतिक्रमण कर, सामायिक कर, ठीक-ठीक मुह ढांक कर निर्दोषता से पदच्छेद पूर्वक सूत्र गिनना। ___ अनुप्रेक्षा अर्थात् अर्थचिंतन, उसकी विधि यह है कि-जिनआगम समझाने में कुशल गुरु के पूर्व श्रवण किये हुए वचन से एकाग्र मन रख चित्त में खूब श्रु त के विचारों का चिंतवन करना।