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श्येन सेठ का दृष्टांत
सेठ ने पूछा कि- ऐसा उसने किसलिये किया होगा? साधु बोले कि- तुमने तथा तुम्हारे कुटुम्ब ने मिलकर अमुक अपराध में उसे तर्जना की थी। जिससे उसने तुम्हारे लिये ये विष-युक्त लड्डु बनाये और अपने लिये विष रहित दो लड्डू बनाये।
पश्चात् उसने अति क्षुधातुर हो जल्दी में वे विषयुक्त लड्डू ही खा लिये, जिससे वह तत्क्षण मर गई।
इस थाल में वे दो विष-रहित लड्डू पड़े हैं और अन्य सब विषयुक्त हैं, इसीसे ये मुझे नहीं कल्पते । जो किसी प्रकार तुमने सकुटुम्ब ये लड्डू खा लिये होते तो तुम धर्म रहित अशरणता से मर जाते । तब श्येन सेठ धर्म पूछने लगा, तब मुनि बोले किभिक्षा के लिये आया हुआ धर्म नहीं कह सकता। यह कह वे अपने स्थान को चले गये।
अब मध्याह्न के समय सेठ सकुटुम्ब साधु के पास जा, नमन करके धर्म पूछने लगा और वे साधु इस भांति कहने लगे
जैसे हाथियों में ऐरावण उत्तम है, देवताओं में इन्द्र उत्तम है, पर्वतों में मेरु उत्तम है, वैसे ही सर्व धर्मों में दान, शील, तप, भावना रूप चार प्रकार का जिन - धर्म उत्तम है। उसमें भी निकाचित कर्म रूप घाम को हरने के लिये मेघ समान तप ही उत्तम है । तप में स्वाध्याय उत्तम है। . __ कहा है कि-कोई किसी भी योग में उपयुक्त रहता हुआ खुशी के साथ समय समय से असंख्य भव के पापों का क्षय करता है और स्वाध्याय में उपयुक्त रहा हुआ उससे भी अधिक भवों के पापों का क्षय कर सकता है । केवली भाषित छः अभ्येतर और छः बाय मिलकर बारह प्रकार के तप में स्वाध्याय समान कोई तप कर्म नहीं है और न होगा ही।