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________________ (ए) के० ) ते श्री जिनवरने ( स्तौति के० ) स्तवे बे, वर्णन करे . (सः के०) ते पुरुष, (परत्र के० ) स्वर्गने विषे ( वृत्रदमन के0) इंडो. तेना (स्तोमेन के० ) समूहें करीने ( स्तूयते के०) स्तवाय , स्तुति कराय ने एटले पोतानी गुणस्तुतियें करीने वर्णन कराय जे. वली ( यः के०) जे पुरुष, (तं के० ) ते परमेश्वरने ( ध्यायति के०) पिंमस्थपदस्थरूपस्थ रूपातीतनेदें करीने ध्यान करे , एटले हृदयने विषे जगवानने ध्यानगोचर करे . ( सः के) ते पुरुष, ( योगिनिः के०) योगीश्वर जे महामुनियो तेमणे ( ध्यायते के ) ध्यानगोचर कराय ने. हवे ते पुरुष कदेवो बे ? तो के (कृप्त के०) रचना कस्यो डे (अष्ट कर्म के०) आठ कर्मनो (निधनः के) विनाश जेणे एवो . अर्थात् सिकावस्थाने प्राप्त थाय ॥१५॥ था प्रकारें श्रा सिंदूरप्रकर ग्रंथमां चार श्लोकें करीनावपूजानो प्रथमप्रक्रम कह्यो॥ इति प्रथमप्रक्रमः ॥१॥ ए परमेश्वरनी पूजा उपर नलराजा श्रने दमयंतीनी कथा जाणवी, ते सर्वत्र प्रसिक ॥ ए श्री तीर्थकरजक्तिनुं प्रथमझार संपूर्ण थयुं ॥१॥
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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