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________________ (ए) वंदति एकशस्त्रिजगता सोऽहर्निशं वंद्यते ॥ यस्तं स्तौति परत्र वदमनस्तोमेन स स्तूयते, यस्तं ध्यायति क्लप्तकर्मनिधनः स ध्यायते योगिनिः ॥ १२॥ अर्थः-( यः के०) जे पुरुष, ( पुष्पैः के०) पुव्योयें करीने ( जिनं के० ) जिननगवानने (अर्चति के० ) पूजन करे बे, (सः के) ते पुरुष, (स्मि त के ) विकसित एवां (सुरस्त्री के०) देवताउनी स्त्रीयोनां ( लोचनैः के०) नेत्रोयें करीने (अर्च्यते के०) पूजाय . अर्थात् जिनपूजन करनारो पुरुष, देवलोकने विषे उत्पन्न थाय ने, अने तेने देवलोकनी स्त्रीयो विकसितने करी पूजे ने, एटले राग सहित तेनुं अवलोकन करे . वली (यः के०) जे पुरुष, ( एकशः के०) एकवार (तं के०) ते जिनप्रजुने (वंदति के०) वंदन करे बे, (सः के०) ते पुरुष, (अहर्निशं के०) रात्रि दिवस, (त्रिजगता के०)त्रण जुवनें करि (वंद्यते के०) वंदन कराय . अर्थात् जे नगवानने वंदन करे, ते त्रिजगतने वंद्य थाय. वली ( यः के०) जे पुरुष, (तं
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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