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________________ (३) वली पण श्रीजिनवरनी नावपूजाना __ फलने कहे . स्वर्गस्तस्य गृहांगणं सहचरीसाम्राज्यलक्ष्मीः शुना, सौनाग्यादिगुणावलिर्विलसति स्वैरं वपुर्वेश्मनि ॥ संसारः सुतरः शिवं करतलक्रोडे खुरत्यंजसा, यः श्रधानरजाजनं जिनपतेः पूजां विधत्ते जनः॥१०॥ अर्थः- ( यः के०) जे ( जनः के० ) पुरुष, (श्रद्धा के०) पूजा रुचि तेनो (जर के०) जार एटले प्रचुरता तेनुं (नाजनं के०) पात्र थयो बता अर्थात् शुन नावना युक्त थयो तो ( जिनपतेः के० ) श्री वीतरागनी (पूजां के०) नावपूजाने ( विधत्ते के०) करे , ( तस्य के० ) ते पुरुषने ( स्वर्गः के०) देवलोक ते, (गृहांगणं के ) गृहना श्रांगणानी पेठे निकट थायजे. वली ( शुजा के०) मनोहर एवी (साम्राज्यलक्ष्मी के०) (साम्रज्यनीधि , ते पुरुषने ( सहचरी के० ) साथें वर्त्तनारी थाय . तथा ( वपुः के०) शरीर तेज ( वेश्मनि के०) घर तेने विषे ( सौजाग्यादि के )
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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