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________________ ( २) पुष्टगतिं दलयति खंम्यति निवारयति । पुनः श्रापदं कष्टं व्यापादयति विनाशयति । पुनः पुण्यं धम संचिनुते वृमि प्रापयति। पुनः श्रियं लक्ष्मी वितनुते विस्तारयति पुनर्नीरोगतां शरीरे श्रारोग्यं पुष्णाति पोषयति । पुनः सौजाग्यं सर्वजनेषु श्लाघनी. यतां विदधाति करोति।पुनःप्रीतिं पखवयति उत्पादयति। पुनर्यशः प्रसूते यशोविस्तारयति । पुनः खर्ग त्रिदिवं देवपदं यति ददाति । पुनर्निति रचयति ददाति।नो जव्यप्राणिन! एवं ज्ञात्वा मनसि विवेकमानीय सम्यनिर्मल विधायिनीह लोके परलोके च सर्वसौख्यदायिनी वंदनादिगुणस्तुतिः श्रीजिननावजपा कार्या । कुर्वतां सतां यत्पुण्यमुत्पद्यते तत्पुण्यप्रसादात् उत्तरोत्तरमांगलिक्यमाला विस्तरंतु ॥ ए॥ नाषाकाव्यः-मात्रात्मक कवित्त लोपें उरित हरै दुःख संकट, आपैं रोग रहितनर देह ॥ पुन्न नंमार नरै जस प्रगटैं, मुगतिपंथसों करै सनेह ॥ रचै सुहाग देहि सोजा जग, परजव पहुंचा सु. रगेद ॥ कुगति बंध दल बलें बनारसि, वीतराग पूजा फल एह ॥ ए॥
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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