SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २०४ ) सब कारज करत रीतें, इंडिनके जीते, बिना सरवंग झूठे हैं ॥ ७१ ॥ वली कां विशेष कहे बे. धर्मध्वंस धुरीणमज्रमरसावारीणमापत्प्रथा, शर्मनिर्मितिकलापारीणमेकांत लंकर्माणम तः ॥ सर्वान्नीनमनात्मनी नमनयात्यंतीनमिष्टे यथा, कामीनं कुमताध्वनीनमज यन्नदौघमदमनाक् ॥ ७२ ॥ इतीप्रियदमप्रक्रमः ॥ १६ ॥ अर्थः- (ौघं के० ) इंद्रियोना समूह ने ( अ - जयन् के० ) नहि वश करतो एवो प्राणी, ( श्रदेमजाक् के० ) कल्याणनो जजनारो थाय बे. ते hear a इंडियघ ? तो के ( धर्मध्वंसधुरीणं के० ) धर्मना नाश करवामां मुख्य बे, वली (भ्रमरसावारीणं के० ) सत्य ज्ञानने यावादन करनार बे, वली ( पालंकमणं के० ) कष्टना विस्तारमां पूर्ण कर्म करनार बे तथा ( शर्म निर्मितिकलापारीणं के० ) कल्याणना निर्माणने विषे चतुर बे, वली ( एकांततः के० ) निश्चयें करी ( सर्वानी
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy