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(२५) ६० ॥ सिंदूरप्रकर ग्रंथ, व्याख्यायां हर्षकीर्तिनिः ॥ सूरिनिर्विहितायां तु, गुणिसंगमप्रक्रमः ॥ इति पं. चदशो [णिसंगमप्रक्रमः ॥ १५॥
नाषाकाव्यः-उप्पयछंद ॥ जो महिमा गुन हनै तुहिन जिम वारिज वारे ॥जो प्रताप संहरै, पवन जिम मेघ विमारै ॥ जो सम दम दल मलै, हिरद जिम उपवन खंमै ॥ जो सुबेम बय करै, वन जिम शिखर विहंडै ॥ जो कुमति अग्नि इंधन सरिस, कुनयलता दिढ मूल जग ॥ सो पुष्ट संग कुःख पुष्टकर, तजहिं विचलन तासु मग ॥ ६ ॥ ___ कथाः- सारा नरसानी संगत उपर सूडानी कथा कहे जेः-कोर एक पोपटनी नार्यायें बे बच्चा जण्यां. तेमां एकनुं नाम गिरिशुक अने बीजानुं नाम पुष्पशुक. ते बेहु महोटा थया. एकदा तेने मुकीने सूडी चणवा ग. पाउलथी बच्चांने पाराधीयें पकड्यां. गिरिशुकने निवपासें वेच्यो, अने पुष्पशुकने ऋषिपासें वेच्यो ॥ यतः॥ जो जादिस्सं संगं, करे सो तादिसो होश् ॥ कुसुमेहिं सुवसंता, तिलावि तग्गंधिया हुँति ॥१॥ पुनर्यथा ॥ निर्गुणेनापि सत्त्वेन, कर्तव्योगुणसंगमः ॥ शशां.